*दिल्ही के बादशाह अकबर को बहोत बुरी तरह हराकर राजपुताना का परचम लहराने वाला जूनागढ़ (मजेवड़ी) का युद्ध*
........…....गुजराती विक्रम संवत १६३३ यानी ई स 1576 में जामनगर के महाराजा जाम श्री सताजी जाडेजा की सेना और अकबर के सैन्य के बीच भीषण युद्ध हुआ था। जिसमे जाम सताजी की भव्य जीत हुई थी और आसपास के मुल्क में बड़ी कीर्ति फैलाई थी।
ई स 1572 में दिल्ही के बादशाह अकबर ने अहमदाबाद -गुजरात के अंतिम बादशाह मुज्जफर तृतीय को हराकर अहमदाबाद की सत्ता हस्तगत की।
वि स १६३३ यानी ई स 1576 में शहाबुदीन अहमदखां को गुजरात का सूबा नियुक्त किया।
उस समय जूनागढ़ के नवाब दौलतखान ने बादशाही सत्ता के सामने विद्रोह किया। यह खबर सुनकर बादशाह अकबर ने सरदार मिर्जाखान को बड़े सैन्य के साथ जूनागढ़ पर चढ़ाई करने के लिए भेजा।अकबर के सैनये की खबर जूनागढ़ के नवाब दौलतखान को पता चली तब उसने जामनगर के बलवान राजा जाम सताजी से अकबर की फ़ौज के सामने मदद मांगी। जाम सताजी जी ने क्षत्रिय धर्म निभाते हुए दौलत खान को निराश नही किया। जाम सताजी ने अपने वजीर जेसो वजीर, अपने चाचा भारमलजी,भाणजी दल जैसे बलवान योद्धाओके साथ तीस हजार का सैन्य जूनागढ़ भेजा। जाम को सेनाने पूरी तैयारी के साथ पहुचकर जूनागढ़ से 4 कोष दूर मजेवड़ी गांव में अपनी छावनी डाली।
अकबर के सैन्य की संख्या और शश्त्रो की ताकत देखकर जूनागढ़ का नवाब दौलतखान डर गया और अपने शहर कोट के दरवाजे बंद कर दिए। दोलत खान ने जाम सताजी की सेना को संदेश पहुचाया की मुजे अकबर के साथ सुलह करनी है इसलिए आप सैन्य के साथ वापस जामनगर चले जाओ मुजे अकबर से युद्ध नही करना है।
नवाब के डर की यह बात सुनकर राजपूतो ने संदेश भेजा कि एकबार लड़ाई के मैदान में राजपूत आ जाये फिर जीतकर लौटता है या केसरिया कर लेता है।इस लिए हम अकबर के सामने लड़ेंगे।
जूनागढ़ की सखावत पर आई जामनगर की फ़ौज के ठिकाने की सरदार मिर्जाखान को खबर मिली तो उसने आधी रात को जामनगर के सैन्य के साथ लड़ाई करने की ठान ली। किसी तरह से यह खबर जामनगर के राजपूत सैन्य के पास पहुची तो सब योद्धा गुस्से से तिलमिला गए और उसी वख्त अकबर की सेना पर हल्ला बोल करने की रणनीति बनाई और तुरंत अकबर के सैन्य पर त्रिशूल व्यूह से हल्ला बोल दिया।आधी रात को दोनों सेनाओ के बीच भीषण लड़ाई हुई।
जाम सताजी की राजपूत सेना ने कोहराम मचा दिया।अकबर के हज़ारों सिपाही को कत्ल कर दिया और सरदार मिर्जाखान अपनी जान बचाने के लिए अपने सैनिकों को लावारिश छोड़कर घोड़े पर सवार होकर भाग निकला।उस को देख कुछ सिपाही भी उस सरदार के साथ भाग निकले।एक प्रहार तक चले इस युद्ध मे अकबर की सेना की बड़ी तबाही हुई।राजपूतो ने मलेच्छो की लाशों के ढेर लगा दिया। जेशा वजीर ने रणभूमि में जाम की ध्वजा लहराई , रातको युद्धभूमि में श्री जामो जयति के नारों से पूरा गगन गूंज उठा।अकबर के 52 हाथी,3500 घोड़े ,70 पालखी ,कुछ तोपें, सारे हथियार, तंबू ओर सरसमान जब्त कर लिए। सरदार मिरजाखन को मारते मरते कोडीनार तक पीछा किया और वहां भी बचे हुए अकबर के सैनिकों का अंत किया। पर चालाक सेनापति मिर्जाखां वहां से दिल्ली भागने में कामयाब रहा।।
सेना ने जब्त किए हुए 52 हाथी ,3500 घोड़ो, अस्त्र सस्त्र के साथ जामनगर के महाराजा जाम सताजी के चरणों मे अर्पण किये।
जूनागढ़ के नवाब दोलतखान को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने जाम महाराजा सताजी की माफी मांगी ओर जूनागढ़ की तरफ से चूर,जोधपुर,भोड परगना के 12-12 गाँव यानी 36 गाव का प्रान्त जाम साहेब सताजी को अर्पित किया।
*इस तरह इस भीषण लड़ाई में 30000 की राजपूत सेना ने उससे भी बड़ी डेल्ही के बादशाह अकबर की सेना को हराया।*
अकबर को करारी हार की खबर मिली तो वह लाल पिला हो गया और तीन गुना लश्कर भेज कर दुबारा चढ़ाई की।
जामनगर के तमाचण गांव की सीम में हुई दूसरी लड़ाई में भी अकबर की सेना जाम सताजी की सेना से बुरी तरह हारी।
डॉ आर टी जाडेजा
जामनगर