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BLOG SUBJECT : 8 वी सदी में राजपूत राजा जाम ओढारजी के लोम्बारडी से व्यापारिक रिस्ते
BLOG TYPE :HISTORY BLOG
BLOG CATEGORY :
POSTED BY :DR RAJENDRASINH TAPUBHA JADEJA
POST DATE: 01-Jul-2020

कुछ दिन पहलेे  इटली का  लोम्बारडी प्रांत  कोरोना की वजह से काफी चर्चा में  आया  है।   इस लोम्बारडी प्रांतसे कुछ पुराने तथ्य इस ब्लॉग में लिखने का उद्देश्य   राजपूत राजा के लोम्बारडी से रिस्तो को उजागर करना है।

       लोम्बारडी में  इ ,स, 584  से 775 तक  आर्य क्रिस्चन राजा  लोम्बारडी वंश के  राजाओ ने राज किया था जो मूलतः जर्मनी के थे।लोम्बारडी नाम long beard,longbardus(मतलब लंबी दाढ़ी वाले) से  निकला है। जो जर्मनी का एक शूरवीर कबीला था।

इटली के राजा  लियो lll लोम्बारडी(leo 3rd) और सिंध के  महाराजा जाम ओढ़ारजी(गहगीर)  समकालीन थे। जाम आधार जी   आजके कछ,हालार,गोंडल मोरवी, राजकोट इत्यादि  के जाडेजा राजवंश के पूर्वज है । (सौराष्ट्र कच्छ में बसे सभी जाडेजा राजपूत जाम ओढरजी के वंशज है।)

  जाम ओढारजी ने लोम्बारडी में अपने राज्य के व्यापारियों की सहूलियत के लिए लोम्बारडी प्रान्त के रोम शहर में एलची नियुक्त किया था।

उस समय नगर समै ओर रोम के बीच बहुत अच्छे रिश्ते थे ।

नगर समै की समृद्धता उस समय जाम राजाओंकी दुरेनदेशी के कारण बहुत फलीफुली थी।

मध्यकालीन नगर समै  आज भी पाकिस्तान के सिंध प्रांत में नगर ठठा के नाम से आज भी अडीखम है।

नगर ठठा में जाम राजवंश के जाडेजा राजाओ ने सदियों तक राज्य किया और महान प्रतापी राजाओ के कारण बलूचिस्तान जे लाहौर तक ओर अफ़ग़ानिस्तान ईरान के कुछ हिस्सों से कच्छ तक नगर समै का प्रान्त फैला था।

नगर ठठा यानी नगर समै कराची से ईशान में 90 किलोमीटर दूर है और वहां महान प्रतापी राजाजाम  हालाजी के नाम से जाम राजाओ ने बहुत बड़ा तालाब बनाया था जो "हालेजी लेक" के नाम से नगर ठठा ओर सिंध के की7 इलाको की प्यास बुजाता है।

   नगर ठठा से 3 किलोमीटर दूर एक घोडाघोडी हिल है नामसे  आज भी प्रचलित है ।जहाँ बलवान राजा जाम लाखाजी उर्फ लाखो घुरारो अपने श्यामकर्ण घोड़े के साथ  रोज सुबह चोटी पर बने शिव मंदिर में दर्शन करने जाते थे।वहां रास्ते मे एक बड़ा बरगद का पेड़ था। दर्शन पश्चात लौटते वक़्त जाम लाखो घुरारो अपने श्यामकर्ण घोड़े पर सवार होकर जोर से घोड़ा दौड़ाकर हिल से नीचे की तरफ आतर थे तब टेस्ट में उस बरगद के पेड़ के नीचे पहुचते ही जाम लाखाजी घोड़े को दोनों पैरों से कस  के दबाते थे।और पेड़ के नीचे एक  बड़ा जुला जुलकर घोड़े को अपने साथ जुलाकर अपने हाथ छोड़ देते थे। श्यामकर्ण घोड़ा भी तालीम पाया हुआ था और वह अपने मालिक राजा के साथ हवा से जमीन पर पांव रखते समय बड़ी शिफ्ट से अपना बैलेंस रख लेता था ओर अपने रास्ते पर  दौड़ने लगता था।

 जाम  लाखो घुरारो के पर दादा जाम ओढ़ारजी उर्फ जाम गहगीर 

से ६३ वी पीढ़ी में जामनगर के वर्तमान महाराजा जाम श्री शत्रुशलयसिंहजी दिग्विजयसिंहजी जाडेजा ऑफ नवानगर  विद्यमान है।

@डॉ आर टी जाडेजा-जामनगर